न्यूज डेस्क - सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिकल 370 के मामले में फैसला सुनाया। उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर से इसे हटाने की ताक़त राष्ट्रपति को थी। अब, इसकी वैधता पर चर्चा करना वक़्त बर्बाद करने के समान होगा। वो कहते हैं कि राज्य से इसे हटाने के लिए विधानसभा की सिफारिश की ज़रूरत नहीं थी। उन्होंने यह भी कहा कि यह प्रावधान अस्थायी था। उन्होंने याचिकाओं को खारिज किया, जहां यह दावा किया गया था कि यह स्थायी प्रावधान था।
आर्टिकल 370 के मामले में 5 जजों की बेंच ने तीन फैसले लिखे। ज़रा भी अलग-अलग बातें कही गई, लेकिन उनका निष्कर्ष एक था। चीफ जस्टिस ने कहा कि जम्मू-कश्मीर ने भारत को समर्पित कर दिया था। उनके हिसाब से वहाँ की कोई अलग संप्रभुता नहीं थी। उन्होंने बताया कि वहाँ का अलग संविधान भारत के साथ के रिश्तों को स्पष्ट करने के लिए था।
फैसले से पहले कुछ दावे किए गए थे कि कई नेताओं को नजरबंद किया गया है, पर एलजी मनोज सिन्हा ने इसे खारिज किया। कुछ नेताओं ने कहा था कि महबूबा मुफ्ती को भी नजरबंद किया गया है। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में गुपकार गठबंधन के कई दलों की याचिकाएं भी दाखिल की गई थीं। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस किशन कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत ने इस फैसले में हिस्सा लिया।