रायपुर। छत्तीसगढ़ सरकार ने नुआखाई पर कल अवकाश की घोषणा की है. दरअसल शासन ने ऐच्छिक अवकाश की सूची के सरल कमांक – 34 में दिनांक 22 सितंबर, 2023 दिन शुक्रवार को “नवाखाई” के लिए ऐच्छिक अवकाश घोषित किया गया था।
धान का कटोरा कहे जाने वाला छत्तीसगढ़ अपनी परम्पराओं को लेकर जाना जाता है। इस के उत्सव, पर्व खेती पर आधारित होते है। धान की रोपाई से लेकर फसल कटने तक यह के किसान विभिन्न प्रकार के सामूहिक उत्सव और पर्व मनाते हैं।
जैसे कि धान रोपाई के समय छत्तीसगढ़ में आदिवासी क्षेत्रों में बीज पंडुम मनाया जाता है आम की पहली फसल खाने के पूर्व मरका पंडुम ठीक वैसे ही अभी खेती किसानी में धान की फसल में बालियां आना शुरू हो गया है और किसान अब इस उत्सव को नवा खाई पर्व के रूप में सामूहिक उत्सव मनाएंगे। धान की नई बाली को अपने इष्ट देवताओं में अर्पित कर परिवार के लोग उस नये अनाज को प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं।
सबसे पहले इसकी शुरुवात उड़ीसा में की गई, वहा नुआखाई भाद्रपद शुक्ल पंचमी के दिन मनाया जाता है। 'नुआखाई' का शाब्दिक अर्थ है 'नया खाना' (नुआ = नया, खाई = खाना)। खेतों में खड़ी नई फसल के स्वागत में यह मुख्य रूप से ओड़िशा के किसानों और खेतिहर श्रमिकों द्वारा मनाया जाने वाला पारम्परिक त्यौहार है, लेकिन समाज के सभी वर्ग इसे उत्साह के साथ मनाते हैं। लोग ‘नुआखाई जुहार’ और ‘भेंटघाट’ के लिए एक-दूसरे के घर आते-जाते हैं।
वर्षा ऋतु के दौरान भादों महीने के शुक्ल पक्ष में खेतों में धान की नई फसल, विशेष रूप से जल्दी पकने वाले धान में बालियां आने लगती हैं। तब नई फ़सल के स्वागत में नुआखाई का आयोजन होता है। यह कृषि संस्कृति और ऋषि संस्कृति पर आधारित त्यौहार है। इस दिन फसलों की देवी अन्नपूर्णा सहित सभी देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना की जाती है। सम्बलपुर में समलेश्वरी देवी, बलांगीर-पाटनागढ़ अंचल में पाटेश्वरी देवी, सुवर्णपुर (सोनपुर) में देवी सुरेश्वरी और कालाहांडी में देवी मानिकेश्वरी की विशेष पूजा की जाती है। नुआखाई के दिन सुंदरगढ़ में राजपरिवार द्वारा देवी शिखरवासिनी की पूजा की जाती है। राजपरिवार का यह मन्दिर केवल नुआखाई के दिन खुलता है।
पहले यह त्यौहार भादों के शुक्ल पक्ष में अलग-अलग गाँवों में अलग-अलग तिथियों में सुविधानुसार मनाया जाता था। गाँव के मुख्य पुजारी इसके लिए तिथि और मुहूर्त तय करते थे, लेकिन अब नुआखाई का दिन और समय सम्बलपुर स्थित जगन्नाथ मंदिर के पुजारी तय करते हैं। इस दिन गाँवों में लोग अपने ग्राम देवता या ग्राम देवी की भी पूजा करते हैं।
नुआखाई के एक दिन पहले नये धान की बालियों के साथ चुड़ा (चिवड़ा ), मूंग और परसा पत्तों और पूजा के फूल खरीद लिए जाते हैं।
ओड़िशा में नुआखाई का इतिहास बहुत पुराना है और वैदिक काल से जुड़ा हुआ है। लेकिन कुछ इतिहासकार जनश्रुतियों का उल्लेख करते हुए पश्चिम ओड़िशा में नुआखाई की परम्परा शुरू करने का श्रेय बारहवीं शताब्दी में हुए चौहान वंश के प्रथम राजा रमईदेव को देते है।
नये धान के चावल को पकाकर तरह-तरह के पारम्परिक व्यंजनों के साथ घरों में और सामूहिक रूप से भी "नवान्हभोज" (नवान्नभोज) यानी नये अन्न का भोज बड़े चाव से किया जाता है। सबसे पहले आराध्य देवी-देवताओं को भोग लगाया जाता है। प्रसाद ग्रहण करने के बाद ‘नुआखाई ‘ का सह-भोज होता है।
अरसा पीठा
इस दिन के लिए ‘अरसा पीठा’ व्यंजन विशेष रूप से तैयार किया जाता है। नुआखाई त्यौहार के आगमन के पहले लोग अपने-अपने घरों की साफ-सफाई और लिपाई-पुताई करके नई फसल के रूप में देवी अन्नपूर्णा के स्वागत की तैयारी करते हैं। परिवार के सदस्यों के लिए नये कपड़े खरीदे जाते हैं।[1]
लोग एक -दूसरे के परिवारों को नवान्ह भोज के आयोजन में स्नेहपूर्वक आमंत्रित करते हैं। इस विशेष अवसर के लिए लोग नये वस्त्रों में सज-धजकर एक-दूसरे को नुआखाई जुहार करने आते-जाते हैं। गाँवों से लेकर शहरों तक खूब चहल-पहल और खूब रौनक रहती है। सार्वजनिक आयोजनों में पश्चिम ओड़िशा की लोक संस्कृति पर आधारित पारम्परिक लोक नृत्यों की धूम रहती है।